
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अमेठी और रायबरेली में अपने मतदाताओं से कांग्रेस के पक्ष में वोट डालने की अपील की.
हालांकि इन दोनों जगहों पर गठबंधन ने उम्मीदवार न उतारने का फ़ैसला किया था और उम्मीदवार उतारे भी नहीं थे, लेकिन सवाल ये है कि इस घोषणा के बावजूद मायावती को ऐसी अपील क्यों करनी पड़ी.
क्या मायावती की यह अपील भविष्य में बनने वाली सरकार का स्वरूप तय करेगी?
पूर्व में मायावती जितना भाजपा पर अक्रामक रही हैं, उससे कहीं ज़्यादा कांग्रेस को उन्होंने निशाने पर लिया है.
मायावती ने रविवार को भी दोनों पार्टियों को निशाने पर लिया, लेकिन अंत में कांग्रेस के प्रति उनका लहजा थोड़ा मधुर हो गया.
उन्होंने कहा, “कांग्रेस और भाजपा एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं. इसके बावजूद भी हमने देश और आम जनहित में ख़ासकर भाजपा और आरएसएसवादी ताक़तों को कमज़ोर करने के लिए उत्तर प्रदेश की अमेठी और रायबरेली सीट को कांग्रेस पार्टी के लिए इसलिए छोड़ दिया था ताकि इस पार्टी के दोनों सर्वोच्च नेता इन दोनों सीटों में उलझ कर न रह जाएं.”
“यदि ये अकेले यहां चुनाव लड़ते हैं तो ये देश की अन्य सीटों को जीतने में अपनी ऊर्जा लगा सकेंगे. अगर गठबंधन ऐसा नहीं करता तो भाजपा इसका फ़ायदा उठाती.”

प्रधानमंत्री पद पर नज़र?
अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस का हमेशा विरोध करने वाली मायावती इतनी नरम क्यों पड़ रही हैं?
इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि मायावती को अल्पसंख्यकों का वोट चाहिए. इसलिए वो यह नहीं दिखाना चाहती हैं कि वो कांग्रेस को हरा कर भाजपा को जिताना चाहती हैं.
वो कहते हैं, “उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश की दो सीटों पर कांग्रेस को समर्थन दे चुकी हैं. उनको मालूम है कि अगर उनको दिल्ली में प्रधानमंत्री या उप प्रधानमंत्री बनना है तो उन्हें भाजपा या कांग्रेस से हाथ मिलाना होगा.”
“भाजपा में मायावती को इन पदों की गुंजाइश कम नज़र आती है, इसलिए कांग्रेस को वो विकल्प के रूप में देखती हैं. कांग्रेस के साथ जाने में यह भी फ़ायदा है कि आगे चल कर अल्पसंख्यक उनसे नाराज़ नहीं होंगे.”
रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं कि मायावती यह भी सोचती हैं कि कांग्रेस की सीटें कम आती हैं और अगर एचडी देवेगौड़ा या इंद्र कुमार गुजराल जैसी स्थिति बनती है तो वो सत्ता पर क़ाबिज़ हो सकती हैं.
