
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और जमीअत उलेमा उलेमा हिंद ने रविवार को घोषणा की कि वह राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समीक्षा याचिका दायर करेंगे. उनका कहना है कि वह 5 एकड़ के जमीन को स्वीकार नहीं करेंगे. पीटीआई के अनुसार लखनऊ में हुई एक बैठक के बाद AIMPLB कार्यसमिति के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा “बोर्ड ने फैसला किया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर की जानी चाहिए.”
इस विवाद में जमीयत एक पक्ष है, वहीं एआईएमपीएलबी ने मामले में एक संगठित भूमिका निभाई है. एआईएमपीएलबी की कार्यसमिति के सदस्यों ने कहा कि याचिका 30 दिनों की समय सीमा के भीतर दायर की जाएगी. उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत का जो भी अंतिम फैसला होगा वे उसका पालन करेंगे. रविवार को उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने पीटीआई को बताया कि यह एक समीक्षा याचिका के पक्ष में नहीं थे, जैसा कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद कहा गया था.
अध्यक्ष ज़ुफ़र फारूकी ने पीटीआई से कहा “फैसले से पहले एआईएमपीएलबी बार-बार कह रहा था कि वह सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी फैसले का पालन करेगा. फिर अब क्यों अपील की जा रही है?” विवादित जमीन के बदले एक और भूखंड लेने के सवाल पर फारूकी ने कहा कि वे 26 नवंबर को एक बैठक में फैसला करेंगे. मूल याचिकाकर्ता इकबाल अंसारी ने भी संकेत दिया है कि वह कानूनी लड़ाई जारी रखने के पक्ष में नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर के अपने फैसले में कहा था कि विवादित जमीन पर मंदिर बनाया जायेगा और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में 5 एकड़ जमीन मस्जिद बनाने के लिए दी जायगी. जमीयत ने कहा कि अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में एक पैनल ने एक समीक्षा याचिका की संभावनाओं पर गहराई से विचार किया. पैनल ने माना “विशेषज्ञ पैनल ने देखा कि निर्णय बाबरी मस्जिद के खिलाफ था और यह अंतिम निर्णय नहीं था क्योंकि समीक्षा का विकल्प संविधान के तहत उपलब्ध है.